बहु कोशिकीय जीव टिड्डा मे पाचन
टिड्डा एक शाकाहारी छोटा कीट प्रजाती का कीट है यह पेड़ पौधे के पत्ते खाता है इसके मुँह मे पत्ती कुतरने हेतु छोटे दाँत नुमा सरचना maxibal और mandibal पाया जाता है
इसका पाचन तंत्र 3 भागो मे बटा होता है
- पहला भाग में मुँह, ग्रासनली, ग्रासनी, क्राप, और गीजर्ड पाया जाता है
- दूसरे भाग में गीजर्ड से छोटी आंत तक का भाग होता है
- तीसरे भाग में छोटी आंत, बड़ी आंत और मलाशय होता है
टिड्डा मे पाचन कैसे होता है
- टिड्डा अपने मुँह द्वारा पत्तियों को खाता है इसके मुँह में लार ग्रंथि होती है जिसमे एक इंज्यामे होता है जिसके द्वारा मण्ड का पाचन होता है
- इसके बाद भोजन ग्रासनी नलिका से होते हुए क्राप तक पहुँचता है क्राप में थोड़े समय के लिए रुकता है इसके दोनों ओर एक जोड़ी लार ग्रंथि पायी जाती है जो भोजन में मिल जाता है दोस्तों जीवो में टिड्डा मे ही अलग अलग जगह लार ग्रन्थी एक ही शरीर में पाया जाता है
- इसके बाद भोजन गीजर्ड में पहुँचता है,गीजर्ड की दिवार बहुत मोटी होती है जो भोजन को पिसकर पाचन योग्य बनाता है
- गीजर्ड से आगे अमाशय होता हैं यहाँ 6 ग्रंथि कोशिका होती है जिसे हिपाटीक शिका कहा जाता है इसके द्वारा भोजन में पाचक रस स्त्रावित किया जाता है जो भोजन को जल्दी पचाने में सहायता करता है
- छोटी आंत मे भोजन का अवशोषण होना प्रारम्भ होता है
अन्तिम भाग में छोटी आंत में धागेनुमा संरचना पायी जाती है इसे मालपिघयन नालिकाये कहते हैं
मालपिघयन नालिकाये एक उत्सर्जन अंग का कार्य करती है - इसके बाद भोजन अंत में बड़ी आंत से होते हुए मलाशय से अनपचा भोज्य पदार्थ बाहर हो जाता है
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