गुणसूत्र क्या है
गुणसूत्र एक तंतु रूपी, X आकार वाली संरचना है जो कोशिका की केंद्रक में पाई जाती है,कोशिका में जब कोशिका विभाजन होता है तब उस वक्त गुणसूत्र स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है,गुणसूत्र को अनुवांशिक सूचनाओं का वाहक भी कहा जाता है
गुणसूत्र की खोज
गुणसूत्र के बारे में जानने से पहले थोड़ा कोशिका के बारे में जान लेते हैँ क्योंकि गुणसूत्र और कोशिका का सीधा सम्बन्ध है
जीव जंतुओं और वनस्पतियों में कोशिका उसकी रचनात्मकता और क्रियात्मक इकाई होती है जिसकी वजह से जीव जंतु या वनस्पति का आकार बनता है
कोशिका ( कोशिका के प्रकार )के कोशिका द्रव में एक गोलाकार चपटा संरचना पाया जाता है जिसे केंद्रक कहा जाता है इस केंद्र के द्वारा ही कोशिका में होने वाली सभी क्रियायो का नियंत्रण किया जाता है,इसकी खोज रॉबर्ट ब्राउन के द्वारा 1831 में की गई थी
गुणसूत्र के बारे में -रॉबर्ट ब्राउन के बाद एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक बेलर ने कहा कि
“ केंद्रक, कोशिका द्रव से घिरा हुआ एक ऐसा रचना है जिसमें कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्र का उदय होता है “
केंद्रक का निर्माण चार भागों से होता है -केंद्रकीय झिल्ली,केंद्रकीय द्रव्य,क्रोमेटीन जाल और केंद्रिका
केंद्रकीय झिल्ली
इसके चार और एक द्रव भरा होता है जिसे केंद्रकीय द्रव कहते हैं
केंद्रकीय द्रव्य
केंद्र की द्रव मैं एक या बहुत सारे केंद्रक द्रव्य होते हैं जिन्हें केंद्रकीय द्रव्यकहते हैं
क्रोमेटीन जाल
जब कभी अल्परंजीत कोशिका को इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जाता है तब केंद्रकीय द्रव्य में रंगा हुआ टेढ़ा मेढा धागे के समान संरचना पाया जाता है जिसे क्रोमेटीन जाल या केंद्रक जलिका कहा जाता है
“ जब कोशिका का विभाजन होता है इस समय जाले की धागे नुमा संरचनाएं छड़ के समान रचनाओं में संकलित हो जाती है जिन्हें गुणसूत्र कहा जाता है और जब केंद्रकों का विभाजन होता है तब भी गुणसूत्र अपना आकर बनाए रखते हैं “
वास्तव में यह समझना आवश्यक है कि क्रोमेटीन जाल में पाए जाने वाला धागा क्रोमेटीन है और रासायनिक दृष्टिकोण से यह एक प्रकार का न्यूक्लियोप्रोटीन है जो न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन से मिलकर बनता है,और यही प्रोटीन जब कोशिका विभाजन होता है तब गुणसूत्र में बदल जाता है
एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक “ COHN “के अनुसार
- क्रोमेटीन केंद्रक की विराम अवस्था में पाए जाने वाले एक रचना है जो कोशिका विभाजन के समय क्रोमोसोम में बदल जाता है
- Waldeyer द्वारा इन कोशिकाओं को 1888 में अभीरंजीत कोशिकाओं के अंदर गाढ़ी रंग के छोटे-छोटे टुकड़ों में देखा था,तब रंगीन दिखाएंगी देने की वजह से उन्होंने इसे क्रोमोसोम कहा था
Chromosome
- Chrom- रंग
- osome- काय या शरीर
क्रोमोसोम के अंदर ही अनुवांशिक सूचनाओं का वाहक जीन पाया जाता है, तब इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है
गुणसूत्र की परिभाषा
कोशिका के केंद्रक में जीन को वहन करने वाली ऐसी इकाई होती है जो कोशिका विभाजन के द्वारा अनुवांशिक गुण को वाहन करता है और साथ ही जीव की आकारकी और कार्यकी को बनाए रखता है, गुणसूत्र कहलाता है
गुणसूत्र की आकारीकी
गुणसूत्र का परिमाप प्रजाति के आधार पर बदल जाती है और इसमें विविधता अधिक होती है किंतु औसत आधार पर गुणसूत्र की लंबाई .25 माइक्रोन से .30 माइक्रोन तक का होता है तथा इसका व्यास.2 से.3 में माइक्रोन तक का होता है
गुणसूत्र कितने प्रकार के होते हैं (gunsutra kitne prakar ke hote hain)
एक सामान्य प्रकार की गुणसूत्र में एक सेंट्रोसोम होता है जिससे जुड़े हुए भुजाएं होती हैं जो कि दो की जोड़ी में होती है किंतु गुणसूत्र की संरचना में विविधता के कारण कभी-कभी सेंट्रोसोम से जुड़ा हुआ एक ही भुजाएं भी होता है
Centromere की उपस्थिति के आधार पर गुणसूत्र के प्रकार निम्नलिखित पाये जाते हैं
मैटेसेंट्रिक
ऐसा गुणसूत्र कोशिका विभाजन की एनापेज अवस्था में दिखाई देता है तथा अंग्रेजी अक्षर की V के आकार जैसी होती है जिसमें दोनों भुजाओं की लंबाई समान होती है तथा Centromere बीच में पाया जाता है
सबमटेसेंट्रिक
ऐसे गुणसूत्र की दोनों भुजा की लंबाई असमान होती है जिसमें Centromere दोनों भुजाओं के मध्य में पाया जाता है
एक्रोसेंट्रिक
गुणसूत्र की ऐसी अवस्था में इनका शेप एक रोड जैसा होता है जिसमें एक अत्यधिक छोटा तथा दूसरा अत्यधिक बड़ा होता है, centromere दोनों भुजाओं के मध्य होता है
टिलोसेंट्रिक
यह छड़ के समान दिखाई देने वाली गुणसूत्र है जिसमें केवल एक ही भुजा होती है, तथा centromere भुजा की आगे होती है
गुणसूत्र की संरचना
क्रोमोनिमेटा
यह नाम वेजदोवस्की नामक व्यक्ति के द्वारा 1912 में दिया गया
जब साधारण प्रकार के सूक्ष्मदर्शी में इसे देखा जाता है तब मध्य अवस्था का गुणसूत्र दो उप इकाइयों से मिलकर बना हुआ हमें दिखाई देता है जो की कुंडली और शर्पीलाकर होता है इन्हें अर्द्धगुणसूत्र कहते हैं दो अर्द्धगुणसूत्र, गुणसूत्र बिंदु पर परस्पर जुड़े होते हैं एक अर्द्धगुणसूत्र में दो या अधिक क्रोमोनिमेटा हो सकते हैं यह गुणसूत्र की संपूर्ण लंबाई में पाए जाते हैं
सेंट्रोमियर
कोशिका विभाजन के समय इसके द्वारा तरकु तंतुओ को जोड़कर क्रोमोसोम के movement में सहायता करते हैं
गुणसूत्र में इसका आकार बहुत छोटा होता है जिसकी वजह से इसे गुणसूत्र बिंदु, काइनेटोकोर क हो या प्राथमिक संकिर्णन कहा जाता है
यह गुणसूत्र को दो भागों में विभाजित करता है
सेंट्रोमेरिक क्रोमोमियर
इसमें दो अर्द्धगुणसूत्र होते हैं इसकी अतिरिक्त गुणसूत्र बिंदु में चार कण दिखाई देते हैं जिन्हें गुणसूत्र बिंदुक या क्रोमोमियर कहा जाता है
क्रोमोमियर
समसूत्री कोशिका विभाजन या अर्द्ध सूत्री कोशिका विभाजन की प्रोफेस अवस्था की प्रारंभ में प्रत्येक क्रोमनीमेटा पर अभी रंजीत कड़ीका पाई जाती हैं अ जिन्हें क्रोमोमियर कहते हैं
द्वितीयक शनकिर्णन
गुणसूत्र में प्राथमिक शनकिर्णन के अलावा द्वितीय शनकिर्णन भी पाया जाता है इसके द्वारा समुच्चय के किसी विशेष गुणसूत्र को पहचान में मदद ली जाती है यह अधिकतम इंटरफेस के समय कोशिका के nucleolus से संबंधित होते हैं और कोशिका विभाजन की telophase अवस्था में केंद्रीका की पुनरसंगठन में भाग लेते हैं इसलिए इन्हें नाभिक संगठक भी कहा जाता है
सैटेलाइट
गुणसूत्र के द्वितीय शनकिर्णन के बाद आगे आने वाला भाग सैटेलाइट कहलाता है क्या किसी छोटे डिस्क के जैसे दिखाई देता है यह क्रोमेटीन जाल के द्वारा शेष गुणसूत्र से जुड़ा होता है
टीलोमीयर
गुणसूत्र के दोनों सिरों पर एक विशेष प्रकार का ध्रुवता पाया जाता है, जिसकी कारण यह किसी दूसरे गुणसूत्र से जुड़ नहीं पता है, यह केवल क्रियात्मक विभिन्नता प्रदर्शित करता है
गुणसूत्र का रासायनिक संगठन
गुणसूत्र का निर्माण प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्ल से होता है जिसमें से DNA और हिस्टोन प्रोटीन से इसका 90% भाग बना होता है जबकि 10% RNA में लवण अहिस्टोन प्रोटीन और अन्य पदार्थ पाए जाते हैं, आईए विस्तार से जानते हैं
हिस्टोन प्रोटीन
इसकी प्रकृति छारीय होती है जो यूकेरियोटिक के डीएनए से जुड़ा होता है इसके द्वारा chromatin का निर्माण होता है विभिन्न प्रकार के जंतुओं और पौधों में डीएनए और हिस्टोन का रिपोर्ट का अनुपात 1:1 होता है
अहिस्टोन प्रोटीन
यह अमलीय प्रकार के होते हैं विभिन्न प्रकार की जीन में इस प्रोटीन की संख्या 12 से लेकर 20 तक हो सकती है यह कई प्रकार की जातियां और उतको में पाई जाती है
गुणसूत्र से सम्बंधित रोग
गुणसूत्र की संख्या और संरचना में परिवर्तन होने से कई प्रकार की समस्या आ जाती है , इनके बारे में निम्नांकित है
डाउन सिंड्रोम- किसे कहते हैं
एक समान व्यक्ति में गुणसूत्र 23 जोड़े होते हैं जिनमे कुल गुणसूत्र 46 होते हैं
इसमें 22 जोड़ी ऑटोसोम्स के होते हैं और 23 व जोड़ा लिंग गुणसूत्र होता है,इनमें जो 22 जोड़ी ऑटोसोम्स पाए जाते हैं उनमें 21 वे जोड़े में एकाधीसूत्रता के कारण व्यक्ति में डाउन सिंड्रोम उत्पन्न होते हैं जिसकी वजह से पीड़ित व्यक्ति छोटे शरीर,मंद बुद्धि वाला, छोटी गर्दन और चौकड़ी और फेस की आकृति मंगोलियन जाति के समान होता है
CONCLUSION –
गुणसूत्र अनुवानशिक सूचनाओं का वाहक होता हैँ इसके अंदर जीन पाया जाता है जिनमे अनुवानशिक सूचनाए पाये जाते हैँ, कोशिका विभाजन की अवस्था में यह स्पस्ट रूप से दिखाई देता हैँ, हमने आपको इसकी संरचना के बारे में भी बताया जिससे इसके बारे में आपको सम्पूर्ण जानकारी हो गई होंगी,
उम्मीद करते हैँ यह जानकारी आपको अच्छी लगेगी
अन्य भी पढ़े
FAQ
- गुणसूत्र क्या है
गुणसूत्र एक तंतु रूपी, X आकार वाली संरचना है ,कोशिका में जब कोशिका विभाजन होता है तब उस वक्त गुणसूत्र स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है,गुणसूत्र को अनुवांशिक सूचनाओं का वाहक भी कहा जाता है
- गुणसूत्र की खोज किसने किया
Waldeyer द्वारा
- गुणसूत्र की परिभाषा
एक ऐसी इकाई होती है जो कोशिका विभाजन के द्वारा अनुवांशिक गुण को वाहन करता है और साथ ही जीव की आकारकी और कार्यकी को बनाए रखना है, गुणसूत्र कहलाता है
- गुणसूत्र के प्रकार
Centromere की उपस्थिति के आधार पर-मैटेसेंट्रिक,सबमटेसेंट्रिक,एक्रोसेंट्रिक टिलोसेंट्रिक प्रकार के होते हैं
- गुणसूत्र नामकरण किसने किया
Waldeyer द्वारा किया गया
- मनुष्य में कितने जोड़े गुणसूत्र होते हैं
मनुष्य में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं