Virus क्या है |
उत्पत्ति के आधार पर वायरस को इस पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले पहली रचना माना जाता है वर्गीकरण के आधार पर यह जीव और निर्जीव की बीच की अवस्था है क्योंकि किसी जीवित कोशिका के अंदर यह भी जीवित अवस्था वाले सभी गुण दर्शाता है किंतु जीवित कोशिका के बाहर इसमें निर्जीव वाले गुण होते हैं ,जीवित कोशिका के अंदर पाए जाने के कारण इसमें परजीवी की सामान गुण पाए जाते हैं
विषाणु की संरचना
एक वायरस माइक्रोस्कोपिक संरचना युक्त न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन का बना होता है और जब यह किसी जीवित कोशिका में प्रवेश करता है तभी इसका जिनोम एक्टिव होता है और खुद का प्रतिलिपि करता है
तथा यहां अपने होस्ट की कोशिकाओं का उपयोग अपने सामान वायरस बनाने के लिए करता है
- जब एक विषाणु संपूर्ण होता है तब उसे विरियान कहा जाता है
- इसकी अगर सरचना की बात करें तब इसमें प्रोटीन वाला भाग capsid कहलाता है तथा capsid की इकाई को capsomere कहा जाता है
- capsomere की छोटी इकाइयों को monomer कहा जाता है
- वायरस का मुख्य केंद्र न्यूक्लिक अम्ल कहलाता है जिसकी इकाइयां न्यूक्लियोंटाइड के नाम से जाना जाता है
- जंतु आपस में न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन के साथ-साथ पाली सेकेराइड का बना अतिरिक्त कवर होता है जिसे envelope कहा जाता है
- envelope की इकाई peplomer कहलाता है
- और जब किसी वायरस का न्यूक्लिक अम्ल निकल जाता है तब वहां सिर्फ प्रोटीन दिखता है तब उसे ghost कहा जाता है
विषाणु की सजीव वाले लक्षण
जब विषाणु किसी किसी जीवित कोशिका के अंदर होते हैं तब सजीव के समान लक्षण दिखाते हैं
- विषाणु तापमान के प्रति संवेदनशील होते हैं
- यह प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्ल की बनी होती है
- न्यूक्लिक अम्ल में पाया जाने वाला डीएनए और आरएनए अनुवांशिक पदार्थ के जैसा काम करता है
- वायरस जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पैदा होती है तब बिना किसी बदलाव के अनुवांशिक गुण ट्रांसफर होती है
- इनमें पाया जाने वाला जिनोम म्यूटेशन दिखाता है
- विषाणु अपने पोषक को ही प्रभावित करता है
- इसके द्वारा एनिमल और प्लांट सेल में इंफेक्शन पैदा किया जाता है
- वायरस अंतरा कौशिकीय होती हैं
विषाणु के निर्जीव वाले लक्षण
जब यह जीवित कोशिका के बाहर होते हैं तब पूरी तरह से निर्जीव वाले लक्षण दिखाते हैं
- विषाणु में कोशिका संरचना नहीं पाई जाती है
- इनमें स्वसन नहीं पाया जाता
- इनमें कोशिका विभाजन नहीं पाया जाता जिसके कारण अपनी प्रतिलिपि नहीं बना पाते
- विषाणु में पोषण उत्सर्जन जैसे जैविक क्रिया नहीं होती
- इसमें जीवद्रव की उपस्थिति नहीं होती है
विषाणु के प्रकार
विषाणु को उस में पाए जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल और संरचना, आकार और सम्मती की आधार पर प्रकार में बांटा गया है
न्यूक्लिक अम्ल के आधार पर-
वायरस में न्यूक्लिक अम्ल पाया जाता है इसके आधार पर इसी दो भागों में बांटा गया है पहला DNA वायरस और दूसरा RNA वायरस
DNA वायरस
जब न्यूक्लिक अम्ल में डीएनए पाया जाता है तब इसे डीएनए वायरस कहा जाता है अधिकांश जंतु विषाणु DNA वायरस होते हैं
RNA वायरस
जब न्यूक्लिक अम्ल में RNA पाया जाता है तब इसे RNA वायरस कहा जाता है
अधिकांश पादप विषाणु में RNA वायरस पाया जाता है
संरचना और सम्मती की आधार पर
अकार संरचना के आधार पर विषाणुओ को तीन भागों में बांटा गया है
हेलीकल विषाणु ( helical viruses )-
इस प्रकार के विचारों विषाणु लचीले या दृढ़ आकार के होते हैं इसलिए इन्हें हेलीकल विषाणु कहा जाता है
उदाहरण टोबैको मोजैक वायरस, पोटैटो मोजैक वायरस,
Icosahedral or spherical viruses –
इस प्रकार की विषाणु का संरचना गोल या बहुभुजीय प्रकार का होता है
उदाहरण पोलियोवायरस एडिनोवायरस सिंपलेक्स वायरस डेंगू ज्वर वायरस
Binal or complex-
इस प्रकार के वायरस में helical viruses aur Icosahedral or spherical viruses के समान सरचना प्रदर्शित करती है
Conclusion –
इस पोस्ट पर हमने आपको पूरी तरह से वायरस के बारे में संपूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया है जिस पर हमने आपको बताया कि पहला वायरस का पता कब चला था और जंतु और पादप कोशिका में इसके प्रकार कितने हैं और किस प्रकार यहां जंतु और पादप कोशिका प्रभावित करती है इसी कड़ी में हमने जाना कि वायरस के कितने प्रकार होते हैं जिस पर आपने जाना की वायरस के दो प्रकार होते हैं न्यूक्लिक एसिड और रचना के आधार पर, उम्मीद है आपको हमारा यह पोस्टजैव विषाणु क्या है के बारे में जानकारी अच्छी लगी
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