पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ  | पृथ्वी की उत्पत्ति का सिद्धांत

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पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ  – पृथ्वी की उत्पत्ति का सिद्धांत

  • पृथ्वी का आरंभ अनेक ग्रहो के छोटे टुकड़ो के ठंडे समूह से हुआ। ये मुख्यताः सिलिकॉन, लौह तथा मैग्नीशियम के यौगिकों तथा सूक्ष्म मात्रा में अन्य तत्वों से बने थे।
  • जैसे-जैसे और अधिक छोटे टुकड़े पृथ्वी से टकराते रहे तथा इसके साथ जुड़ते गये, उनकी गतिज ऊर्जा ऊष्मा में परिवर्तित होती गयी।
  • यूरेनियम, थोरियम और पोटैशियम के परमाणुओं के रेडियोएक्टिव विघटन तथा पृथ्वी के सम्पीडन के कारण भी ग्रह धीरे-धीरे गर्म होता गया जिससे अन्ततः इसकी उत्पत्ति के 80 करोड़ वर्ष बाद यह पिघल गया। पिघलने के बाद, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के अंतर्गत स्वयं को पुनर्व्यवस्थित करना प्रारंभ कर दिया।
  • पृथ्वी का ताप बढ़ने पर, लोहा पिघल गया। पिघला हुआ लोहा बड़ी-बड़ी बूंदों के रूप में पृथ्वी के केन्द्र की ओर गिरने लगी। इस प्रक्रिया में पृथ्वी के अंतरंग में स्थित हल्के पदार्थों का स्थान लोहे ने ले लिया और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह पर आ गये जिनसे पूर्वकालीन भूपर्पटी का निर्माण हुआ।

पृथ्वी का इस प्रकार परतों से संगठित होने की प्रक्रिया को विभेदन (Differentiation) कहते हैं। विभेदन के परिणामस्वरूप पृथ्वी 3 प्रमुख परतों-(i) भूपर्पटी, (ii) प्रवार (Mantle) तथा क्रोड (Core) में संगठित हुई। भूपर्पटी का 3/4 हिस्सा पानी से ढका है जिसके ऊपर वायुमंडल का आवरण है।

(i) भूपर्पटी: पृथ्वी की सबसे बाहरी परत सेब अथवा संतरे के छिलके के समान है, इसकी मोटाई भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है जैसे महाद्वीपों में यह 35 से 60 किमी. तक मोटी हो सकती है।

सागर के नीचे भूपर्पटी पतली होती है अर्थात् लगभग 10 किमी उत्पत्ति के समय से ही भूपर्पटी लगातार टूटती रही तथा पुन: संगठित होती रही और इस प्रक्रिया में नये महाद्वीप तथा सागर बनते रहे।

(ii) प्रावारः भूपर्पटी तथा क्रोड के मध्य का हिस्सा प्रावार कहलाता है। यह भूपर्पटी की तली से लेकर केंद्र की ओर 2900 किमी. की गहराई तक फैला हुआ है।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्रावार मुख्यतः लोहे तथा मैग्नीशियम सिलीकेट से बना है।

(iii) क्रोडः क्रोड का आंतरिक भाग ठोस गोले के रूप में है जिसके चारों ओर तरल आवरण होता है। पृथ्वी के केंद्र पर ताप लगभग 4000°C होता है तथा दाब

वायुमंडलीय दाब की तुलना में लगभग 37 लाख गुना होता है। इस उच्च दाब के कारण ही उच्च ताप के बावजूद क्रोड के आंतरिक भाग में लोहा ठोस रूप में होता है, जबकि क्रोड के बाहरी आवरण में लोहा पिघल जाता है, क्योंकि यहां दाब अपेक्षाकृत कम होता है।

इस प्रकार पृथ्वी का निर्माण हुआ

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